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विपक्षी दलों के सबसे बड़े गठबंधन I.N.D.I गठबंधन में यूं ही टूट नहीं पड़ी है। दरअसल, इस गठबंधन के बिखरने की असली वजह में ‘एक’ सबसे बड़ी गलती सामने आ रही है। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के कई कद्दावर नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारे वाले मामले पर इंडिया ब्लॉक के प्रमुख दल कांग्रेस की ओर से सबसे ज्यादा लापरवाहियां बरती गईं। नतीजा हुआ कि क्षेत्रीय दल सीटों के बंटवारे की घोषणा का इंतजार करते रहे और चुनाव नजदीक आते देख धीरे-धीरे या एतो पाला बदलते रहे या अलग होकर सियासी मैदान में अकेले उतर पड़े।
गठबंधन में शामिल सियासी दल के उक्त वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस स्थिति में क्षेत्रीय दल मैदान में मजबूती के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह जरूरी है कि अब वह कांग्रेस का इंतजार न करें और अपने तरीके से चुनावी मैदान में उतरें। सियासी जानकारों का भी मानना है कि जून में हुई गठबंधन की पहली बैठक के बाद से लेकर लगातार हो रही बैठकों में सीटों के बंटवारे पर कोई फैसला नहीं लिया गया। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं का मानना है कि अगर सीटों के बंटवारे पर ही फैसला हो जाता, तो शायद गठबंधन की मजबूती भी बनी रहती और चुनाव में उसके आधार पर बड़ी लड़ाई भी लड़ी जाती। लेकिन इस मामले में हुई बड़ी चूक और लापरवाही पर गठबंधन के दल एक-एक कर अलग होते रहे। सियासी जानकार भी मानते हैं कि गठबंधन के कमजोर पड़ने के कई प्रमुख कारण नजर आ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रूपिंदर चहल कहते हैं कि कई जगह पर सियासी गणित तालमेल नहीं खा रही थी इसलिए गठबंधन कमजोर हुआ। इसके अलावा वह कहते हैं कि आपसी गठबंधन के बाद भी सियासी दलों में सामंजस्य न के बराबर दिखा। गठबंधन में शामिल सियासी दल से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पटना से लेकर मुंबई और बेंगलुरु से लेकर दिल्ली में गठबंधन की बैठकों में जिन मुद्दों पर सियासी रणनीति बनाने की बात हुई, वह असल में कभी गंभीरता से आगे बढ़े ही नहीं। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है इसको लेकर प्रमुख घटक दल कांग्रेस के साथ बातचीत नहीं हुई। लेकिन जिन मुद्दों पर चर्चा होनी थी, उसे छोड़कर सिर्फ बैठकें होती रहीं। उनका मानना है कि अगर एक महत्वपूर्ण बिंदु यानि सीट शेयरिंग पर शुरुआती दौर में ही फैसला हो जाता, तो संभव है गठबंधन की मजबूती बरकरार रहती।