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राजस्थान में एक ही दिन में एक हजार से ज्यादा कांग्रेसी बने भाजपाई…

RASHTRADEEP NEWS

10 मार्च को राजस्थान में एक ही दिन में एक हजार से भी ज्यादा कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की, इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्व मंत्री राजेंद्र यादव, रिछपाल सिंह मिर्धा, खिलाड़ी लाल बैरवा, पूर्व विधायक आलोक बेनीवाल, विजय पाल मिर्धा, राम पाल शर्मा, रामनारायण किसान, अनिल व्यास, सुरेश चौधरी, रणदीप सिंह भिंडर, दीपेंद्र कंवर, रिजु झुनझुनवाला आदि शामिल हैं कि एक साथ इतने दिग्गजों के शामिल होने से लोकसभा चुनाव के 13 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा को मजबूती मिलेगी। हाल ही के विधानसभा चुनाव में 11 संसदीय क्षेत्र ऐसे रहे जिनमें भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं। इस अंतर को पूरा करने के लिए ही भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गजों को शामिल किया है। आने वाले दिनों में कांग्रेस के और नेता भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेसियों के शामिल होने पर कुछ आलोचक भाजपा की निंदा कर रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इससे भाजपा में असंतोष बढ़ेगा।

यदि कांग्रेस से आए नेताओं को उम्मीदवार बनाया जाएगा तो फिर भाजपा के कार्यकर्ताओं का क्या होगा? क्या भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा है? ऐसे तर्क अपनी जगह है, लेकिन जब देश को बचाने की जरूरत हो तो कांग्रेसियों को भी गले लगाना पड़ता है। सब जानते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार को 303 सांसदों का बहुमत रहा, इसलिए जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाया गया तथा अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बना। अब जब देश के सामने कट्टरपंथ चुनौती बनकर खड़ा है तब देश को बचाने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से पहले के हालातों को देखा जा सकता है। यदि केंद्र में मोदी सरकार नहीं होती तो आज उत्तर प्रदेश इतना विकास नहीं कर पाता। पश्चिम बंगाल के हालात देश के सामने हैं। संदेशखाली का जो मामला सामने आया है, उसे तो हर हिंदू का खासकर महिलाओं का सिर शर्म से झुक गया है। जो लोग कांग्रेसियों के भाजपा में शामिल होने का ऐतराज कर रहे हैं उन्हें एक बार पश्चिम बंगाल का दौरा करना चाहिए। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके का तो मानना है कि सनातन धर्म को ही खत्म कर देना चाहिए। सरकार में बैठे मंत्री खुलेआम सनातन को गालियां दे रहे है। कमोबेश यही स्थिति कांग्रेस शासित कर्नाटक में भी है। दक्षिण के कई राज्यों में जो हालात उत्पन्न हो गए है उससे देश को भी खतरा है। इतनी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी लोकतंत्र के माध्यम से देश को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है। देश आज जिस तेजी गति से विकास कर रहा है उसे पूरी दुनिया देख रही है। अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी भारत के साथ मित्रता रखना चाहता है। जो चीन हमेशा हमें डराता था, वह आज खुद डर रहा है। इसे भारत की कूटनीति ही कहा जाएगा कि सोवियत रूस भी भारत को अपना दोस्त मानता है। अब जब 400 पार का आह्वान किया गया है तो कांग्रेसियों को गले लगाने की जरूरत है। यह नहीं है कि कुछ नेता हमेशा सत्ता के साथ रहना चाहते हैं, इसलिए भी कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की लाइन लगी हुई है।खोने को कुछ नहीं:राजस्थान में कांग्रेस के पास खोने को कुछ भी नहीं है। ऐसे में कुछ कांग्रेसी भाजपा में चले जाए तो भी कांग्रेस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वर्ष 2014 और 2019 में कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हारने का रिकॉर्ड बना चुकी है। ऐसे में 2024 में भी सभी 25 सीटें कांग्रेस हार जाए तो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अशोक गहलोत ने जिस तरह पांच वर्ष अपनी सरकार चलाई उससे कांग्रेस संगठन खत्म हो गया। गहलोत को संगठन से ज्यादा अपनी सरकार की चिंता थी। कांग्रेसियों के भाजपा में शामिल होने पर अशोक गहलोत को आलोचना करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अपनी सरकार बनाए रखने के लिए गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाया। सवाल उठता है कि आखिर गहलोत के पास ऐसी कौनसी जादू की छड़ी थी, जिसमें सभी 13 निर्दलीय विधायक समर्थन देते रहे? यहां तक कि गहलोत के आदिवासी क्षेत्र के दो विधायकों का समर्थन भी हासिल किया। अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए गहलोत ने सभी हथकंडे अपनाए यहां तक कि कांग्रेस हाईकमान तक को चुनौती दी गई। गहलोत ने कांग्रेसियों को जो सिखाया वो ही आज किया जा रहा है।

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