।।श्रीहरि:।।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !! 🌻” कामना ही बन्धन है। कामना न हो तो मुक्ति स्वतः सिद्ध है।”-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
दिनांक : 14.04.2024वार : रविवार सूर्योदय : प्रात: 06:13 बजेसूर्यास्त : सांय 07:00 बजे चन्द्रोदय : सांय 10:25 बजे हिन्दु मास : चैत्रपक्ष :- शुक्ला तिथि :- षष्ठी विक्रम सम्वत : 2081शक सम्वत :- 1946सम्वत नाम : पिंगल ऋतु :- बसंत- ग्रीष्म नक्षत्र – आद्रा
सूर्य राशि – मेष चंद्र राशि – मिथुन दिशा शूल : पश्चिम दिशा
अभिजित मुहूर्त :- 12:12 – 13:03 शुभराहु काल :- शाम 04:30 से शाम 06:00 बजे तक
चोघडिया दिन काल 06:15 – 07:51 अशुभशुभ 07:51 – 09:26 शुभरोग 09:26 – 11:02 अशुभउद्वेग 11:02 – 12:37 अशुभचर 12:37 – 14:13 शुभलाभ 14:13 – 15:49 शुभअमृत 15:49 – 17:24 शुभकाल 17:24 – 18:59 अशुभ
चोघडिया रात लाभ 18:59 – 20:24 शुभउद्वेग 20:24 – 21:48 अशुभशुभ 21:48 – 23:13 शुभअमृत 23:13 – 24:37 शुभचर 24:37 – 26:01 शुभरोग 26:01 – 27:25 अशुभकाल 27:25 – 28:50 अशुभलाभ 28:50 – 30:14 शुभ
नवरात्रि छठे दिन होंगी माँ कात्यायनी की पूजा
विशेष महत्व :-मां दुर्गा की छठी विभूति हैं मां कात्यायनी। शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करते हैं मां की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है। कात्यायनी माता का व्रत और उनकी पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधा दूर होती है।
मां कात्यायनी के मंत्र:“कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।”मंत्र – ‘ॐ ह्रीं नम:।।’चन्द्रहासोज्जवलकराशाईलवरवाहना।कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।। मंत्र – ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
कात्यायिनी देवी की कथा : रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था। उसने कठिन तप किया था। ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- ‘वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- ‘ठीक है प्रभो। देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।’ ब्रह्माजी ‘एवमस्तु’ कहकर अपने लोक चले गए। वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया।तब भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना की। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया। भगवती दुर्गा हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी मारे गए। फिर विवश होकर महिषासुर को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा। महिषासुर ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। कहते हैं कि देवी कात्यायनी को ही सभी देवों ने एक एक हथियार दिया था और उन्हीं दिव्य हथियारों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया था। -पंडित ब्रज मोहन पुरोहित नृसिंह भैरव आश्रम देवीकुण्ड सागर, बीकानेर