RASHTRADEEP NEWS
बीकानेर में मंगलवार को मीडिया से बातचीत में पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी ने कहा कि, लोकसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ ने घेराबंदी करके, दबाव बनाकर जिन लोगों को टिकट दिलवाया, वो लोग चुनाव हार गए। भाटी ने चूरू में राहुल कस्वां को टिकट नहीं देने को पार्टी का निर्णय गलत बताया। उन्होंने कस्वां और उनकी कार्यशैली की तारीफ की। राहुल कस्वां का टिकट काटने से जाट वोटर्स छिटक गए। इससे भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।
भाटी ने टिकट वितरण पर कहा कि
राजेंद्र राठौड़ ने टिकट कटवाकर माहौल खराब किया। ये सबसे संकट वाली शुरुआत थी। इससे निश्चित तौर पर वातावरण खराब हुआ। इसी कारण जगह-जगह पार्टी में विद्रोह हो गया। बाड़मेर में भी इसी कारण निर्दलीय खड़े हुए। अन्य जगह भी इसी तरह के नेता खड़े हो गए। भाटी ने कहा कि टिकटों का वितरण सही होता तो भाजपा की झोली में और सीटें आ सकती थीं। संगठन ने भी अपना काम सही तरीके से नहीं किया। संगठन में पन्ना प्रमुख, बूथ प्रभारी का काम सही नहीं था। वोटर लिस्ट में किसके नाम जुड़े हैं, किसी ने गलत नाम तो नहीं जोड़ लिए। जब वोट डालने का काम शुरू हुआ तो पता चला कि पूरे परिवार का ही नाम कट हो गया। ये सब गलतियां देखने वाला कोई नहीं था। संगठन की जो वर्किंग होनी चाहिए, वो कहीं भी नहीं रही। इसके कारण भी चुनाव में स्थिति खराब हुई है। इसमें अब सुधार होना चाहिए।
जीत सकते थे बीकानेर संभाग की तीनों सीट
भाटी से बीकानेर संभाग की तीन में से दो सीट (श्रीगंगानगर और चूरू) हारने के मुद्दे पर कहा कि संभाग में भी टिकट वितरण सही नहीं हुआ है। टिकट सही दिया जाता तो हम तीनों सीट जीत जाते। भाटी ने यह भी कहा कि किसी न किसी के दबाव में टिकटों को बदला गया। इसी कारण पार्टी को जगह-जगह हार का सामना करना पड़ा।
ब्यूरोक्रेसी पर सवाल उठाते हुए कहा कि
सुनने में आ रहा है कि मुख्य सचिव के कमरे के आगे विधायक लाइन में लगे रहते हैं। अगर ऐसा है तो जनप्रतिनिधि बनना ही बेकार हो गया। पार्षद हो, पंचायत राज के पदाधिकारी की ऐसे में क्या स्थिति होगी। अंग्रेजों के वक्त की ट्रेनिंग ही अफसरों को दी जा रही है। इसमें सुधार होना चाहिए।जब तक कांग्रेस का राज रहा, तब तक ब्यूरोक्रेसी काबू में रही। जब से सरकारें बदलने लगी हैं, तब से ब्यूरोक्रेसी काबू में नहीं रही। भाटी ने कहा कि बड़े-बड़े अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। आईएएस, आरपीएस, आरएएस को पता है कि उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने वाली। वो समझते हैं कि हम तो रिटायर होकर ही जाएंगे, तब तक कोई कुछ नहीं करेगा। जनप्रतिनिधि तो पांच साल में बदल जाएंगे।