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धनखड़ के इस्तीफे के बाद बढ़ी हलचल, उपराष्ट्रपति पद की रेस में कौन बनेगा NDA का ट्रम्प कार्ड?

Vice President of India Election 2025

जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। मंगलवार को गृह मंत्रालय द्वारा गजट नोटिफिकेशन जारी करते ही यह पद औपचारिक रूप से रिक्त घोषित कर दिया गया, और अब जल्द ही चुनावी कार्यक्रम की घोषणा होने की उम्मीद है। इस बीच, नए उपराष्ट्रपति को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।

कौन होगा NDA का चेहरा? ये हैं सबसे मजबूत दावेदार

  • थावर चंद गहलोत: सामाजिक समीकरण का सटीक फार्मूला दलित चेहरे के रूप में गहलोत की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है। पार्टी में संगठनात्मक पकड़, प्रशासनिक अनुभव और विवादों से दूरी — ये सब उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए फिट बनाते हैं। गहलोत का नाम जातीय संतुलन साधने में मददगार साबित हो सकता है।
  • ओम माथुर: संगठन का धुरंधर, संघ की पसंद राजस्थान से आने वाले माथुर बीजेपी के पुराने वफादार नेता माने जाते हैं। कई राज्यों में चुनावी ज़िम्मेदारी निभा चुके हैं और मोदी-शाह की करीबी माने जाते हैं। अगर पार्टी संगठन के अनुभव को तवज्जो देती है, तो माथुर का नाम शीर्ष पर रहेगा।
  • आरिफ मोहम्मद खान: एक ‘सॉफ्ट पॉवर’ गेम? मुस्लिम चेहरे के रूप में आरिफ मोहम्मद खान की उम्मीदवारी से बीजेपी को सांप्रदायिक संतुलन का लाभ मिल सकता है। खासकर बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में जहां मुस्लिम वोट बैंक अहम है — ऐसे में यह एक बड़ा राजनीतिक संदेश हो सकता है।
  • हरिवंश: जेडीयू की साख और NDA की सहूलियत राज्यसभा के वर्तमान उपसभापति और अनुभवी पत्रकार रहे हरिवंश, अगर सहमति के नाम पर मंथन चले तो सबसे “safe bet” साबित हो सकते हैं। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले हरिवंश का नाम, जेडीयू के साथ गठबंधन मज़बूत करने में उपयोगी रहेगा।
  • रमा देवी: महिला + दलित + बिहार = परफेक्ट समीकरण रमा देवी तीन बार सांसद रह चुकी हैं और दलित-पिछड़ा वर्ग की लोकप्रिय नेता हैं। बिहार में बीजेपी यदि महिला और पिछड़ा वर्ग को साधने की रणनीति अपनाती है तो उनका नाम सबसे उपयुक्त माना जाएगा।
  • रामनाथ ठाकुर: कर्पूरी ठाकुर की विरासत और EBC कार्ड जननायक कर्पूरी ठाकुर के पुत्र और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर का नाम नया लेकिन महत्वपूर्ण विकल्प बनकर उभरा है। EBC और OBC समीकरण में उनका नाम फिट बैठता है। एनडीए के लिए यह एक भावनात्मक और रणनीतिक दोनों रूप से मजबूत फैसला हो सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि उपराष्ट्रपति पद के बहाने भाजपा 2025 के बिहार चुनाव और 2026 के बंगाल चुनाव की रणनीति भी साध रही है। ऐसे में हर नाम के पीछे एक गहरा राजनीतिक संकेत छुपा है।

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