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आर्मीनिया, यूक्रेन… नए जमाने की जंग में ब्रह्मास्त्र बने आत्मघाती ड्रोन, भारत को बड़ी सफलता, रूस को तलाश
कीव: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के 9 महीने हो गए हैं और यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों ही देशों की सेनाएं लगातार एक-दूसरे पर घातक बम और मिसाइलों की बारिश कर रही हैं। यूक्रेन जहां पश्चिमी देशों से मिले हथियारों पर दांव लगा रहा है, वहीं रूस के हथियारों का जखीरा खाली होता जा रहा है और वह ईरान से मिसाइलें और ड्रोन खरीद रहा है। रूस के इन हथियारों में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, उसमें आत्मघाती ड्रोन सबसे प्रभावी साबित हो रहा है। रूस की सेना ने ईरान के शहीद-136 आत्मघाती ड्रोन की मदद से यूक्रेन को अंधेरे में डूबो दिया है। वहीं अब यूक्रेन भी आत्मघाती ड्रोन की मदद से रूस पर हमले तेज कर रहा है। ये वही आत्मघाती या कामीकाजी ड्रोन हैं जिनकी मदद से अजरबैजान ने आर्मीनिया को जंग में मात दी थी। अब आत्मघाती ड्रोन की इस सफलता के बाद अब भारतीय सेना ने भी इन पर बड़ा दांव लगाया है। यही नहीं भारत ने एक महाशक्तिशाली कामीकाजी ड्रोन का परीक्षण भी किया है। आइए जानते हैं, क्या होते हैं कामीकाजी ड्रोन और भारत कैसे आगे बढ़ रहा है….
कामीकाजी ड्रोन एक हवाई हथियार प्रणाली होती है जिसमें हथियारों से लैस ड्रोन विमान अपने लक्ष्य का इंतजार करता है और उसकी पहचान होते ही शिकार पर मौत बनकर टूट पड़ता है। इस हथियार प्रणाली की खास बात यह होती है कि ड्रोन विमान इंसान को विभिन्न लक्ष्यों में सबसे जरूरी शिकार को निशाना बनाने का पूरा विकल्प देता है। इसे कामीकाजी ड्रोन नाम दूसरे विश्वयुद्ध के समय तबाही मचाने वाले जापान के कामीकाजी पायलटों के नाम पर दिया गया है। इन जापानी पायलटों ने अपने विस्फोटकों से भरे विमान को दुश्मन के लक्ष्यों से टकरा दिया था। रूस के सैन्य अभियान के दौरान यूक्रेन की सेना ने अक्टूबर महीने में दावा किया था कि उस पर कामकाजी ड्रोन से हमला हुआ है। पश्चिमी देशों ने दावा किया है कि रूस ईरान के शहीद 136 आत्मघाती ड्रोन विमानों का इस्तेमाल कर रहा है।
मिसाइल और ड्रोन विमान का मिश्रण होता है कामीकाजी ड्रोन
रूस ने इन आत्मघाती ड्रोन विमानों की मदद से यूक्रेन के कई बिजली संयंत्रों और आधारभूत ढांचों को निशाना बनाया है। इससे यूक्रेन में बिजली संकट पैदा हो गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक आत्मघाती ड्रोन एक तरह का हथियार सिस्टम होता है जो मानवरहित होता है। इसे उन लक्ष्यों को तबाह करने के लिए बनाया गया है जो आंखों से दिखाई नहीं देते। इन ड्रोन विमानों में आगे की ओर विस्फोटक लगा होता है जो टकराते ही फट जाता है। यह सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइल और ड्रोन विमान का मिश्रण होता है। मिसाइल से अलग होने के कारण कामीकाजी ड्रोन को ठीक उसी तरह से लॉन्च किया जा सकता है, जिस तरह से ड्रोन विमानों को किया जाता है। ये आत्मघाती ड्रोन विमान लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं, हमले वाले इलाके का सर्वेक्षण कर सकते हैं और शिकार की तलाश कर सकते हैं।एक बार जब शिकार की तलाश हो जाती है तो उसे लॉक कर दिया जाता है। इसके बाद ये ड्रोन विमान हवा से मिसाइल की तरह से अपने शिकार पर टूट पड़ते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं। ये आत्मघाती ड्रोन विमान आकार में अन्य हमलावर या लड़ाकू ड्रोन की तुलना में छोटे, सस्ते और बहुत आसान सिस्टम से लैस होते हैं। इन आत्मघाती ड्रोन विमान को बड़ी संख्या में एक साथ लॉन्च किया जाता है। ये बहुत निचली कक्षा में उड़ान भरते हैं और रेडॉर की पकड़ में भी नहीं आते हैं। हालांकि इन्हें धीमी गति के कारण जमीनी सैनिक मार गिरा सकते हैं। ये ड्रोन क्रूज मिसाइलों की तुलना में बहुत सस्ते होते हैं और प्रत्येक ड्रोन की कीमत 20 हजार डॉलर होती है। ईरान का शहीद-136 ड्रोन 40 किलोग्राम वजनी होता है। अगर यह सही निशाने पर लग जाता है तो उससे काफी नुकसान होता है। रूस ने इसका नाम गेरान-2 कर दिया है और इसमें अपना जीपीएस ग्लोनास लगा दिया है। रूस लगातार ईरान से घातक ड्रोन की खरीद कर रहा है।
भारत को पोखरण में मिली बड़ी सफलता, एएलएस 50 ने दिखाया कमाल
आत्मघाती ड्रोन की दिशा में भारत को भी बड़ी सफलता हाथ लगी है। भारत के स्वदेशी आत्मघाती ड्रोन ने पिछले दिनों पोखरण में सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य को तबाह किया था। यह कामीकाजी ड्रोन विमान चुनौतीपूर्ण इलाकों और ऊंचाई वाले जोन से भी काम कर सकता है। इस स्वचालित सिस्टम को भारत की टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड कंपनी ने बनाया है। यह किलर ड्रोन अपने साथ 23 किलोग्राम विस्फोटक ले जा सकता है। इस सिस्टम को एएलएस 50 नाम दिया गया है। इसने परीक्षण के दौरान ड्रोन विमान ने अपने लक्ष्य को निशाना बनाया। यह ड्रोन अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाके में भी बहुत कारगर पाया गया है।यह ड्रोन 1000 किमी तक हमला करने में सक्षम है। सेना अगर चाहे तो वह विस्फोटक ले जाने की क्षमता को बढ़ा सकती है। इसे भारतीय नौसेना के युद्धपोतों से भी लॉन्च किया जा सकता है। भारतीय सेना ने कामीकाजी ड्रोन खरीदने के लिए निविदा निकाली है। आत्मघाती ड्रोन दागने के 10 सिस्टम लिए जाने हैं जिसमें 120 ड्रोन होंगे। यह मेड इन इंडिया रास्ते से खरीदा जाएगा। इसकी कम से कम रेंज 100 किमी होनी चाहिए और दो घंटे तक हवा में रहने की क्षमता होनी चाहिए। भारतीय सेना पहले सही इजरायल के विशाल और शक्तिशाली हेरोप आत्मघाती ड्रोन विमानों का इस्तेमाल करती रही
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