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धर्म बदलने वाले दलितों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा जांच कराई जा रही है। इसको लेकर जांच आयोग ने 1 साल का विस्तार दिया है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने धर्मांतरण करने वाले दलितों को मिलने वाले आरक्षण का विरोध करने की बात कही है।
आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाना ने बताया कि संविधान में अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों को रखा गया है। इसके तहत हिंदू, सिख और बैद्ध धर्म के अलावा किसी भी दूसरे धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। मकवाना ने कहा कि 1950 में राष्ट्रपति के आदेश में कहा गया था कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों को ही अनुसूचित जाति की सूची का सदस्य माना जा सकता है। इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने साल 2022 में भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे केजी बालकृष्ण की अगुवाई में जांच आयोग गठित किया था। इस मामले में केंद्र सरकार ने जांच आयोग को एक साल का समय और दे दिया है।
मकवाना ने बताया है कि आरक्षण जाति के आधारित है। क्योंकि धर्म बदलने से पहले जो हिंदू होते हैं। वो धर्म बदलने के बाद मुस्लिम, ईसाई बन जाते हैं। जिसकी व्याख्या संविधान में नहीं है। मतलब धर्मांतरण करने वाले लोगों को आरक्षण मिलता है तो ये संविधान की भावना के खिलाफ है। क्योंकि धर्मांतरण के बाद आरक्षण का मामला ही खत्म हो जाता है।