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राजस्थान के संविदाकर्मियों के लिए बड़ी खबर…

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RASHTRADEEP NEWS

राजस्थान सरकार के तमाम दावें धरातल पर धराशाई हो रहे हैं। पिछले दस साल में सरकार ने केवल चिकित्सा विभाग में ही दो बार संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए नौकरी की राहें खोलीं। जबकि शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, जलदाय, विद्युत निगम सहित अन्य महकमों के संविदा कर्मचारियों को अभी भी पक्की नौकरी का इंतजार है।

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पिछले दिनों में जयपुर में एक संविदा कर्मचारी के आत्महत्या करने के बाद इसे लेकर आक्रोश बढ़ गया है। सरकार संविदा कर्मचारियों के लिए बने कायदों का रिव्यू करने का दावा कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछली सरकार के समय संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए बनी गाइडलाइन भी राहत नहीं दे पा रही है। हालात यह है कि कई सालों तक विभागों में सेवाएं देने के बाद भी उन्हें न्यूनतम मजदूरी तक मिल पा रही है।

राहत: चिकित्सा व पंचायती राज में भर्ती

चिकित्सा विभाग व पंचायतीराज विभाग संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए दस साल में दो बार मौके दिए गए। इस दौरान संविदा कर्मचारियों को बोनस अंक देकर नियमित किया गया। इन विभागों में काम करने वाले कई कर्मचारियों को पांच वर्ष से कम की सेवा होने की वजह से नियमित होने का फायदा नहीं मिल सकता है।

आफत: विद्यालय सहायकों को इंतजार, पैराटीचर्स में खुशी

शिक्षा विभाग में पैराटीचर्स को नियमित होने का तोहफा मिल सका है। जबकि विद्यालय सहायकों का हर साल एक साल के लिए कार्यकाल बढ़ाया जाता है। विद्यालय सहायकों की ओर से नियमित करने की मांग की जा रही है।

पड़ताल: सभी विभागों में संविदा कर्मचारियों की फौज

सरकार की ओर से संविदा कर्मचारियों की संख्या कभी एक लाख तो एक डेढ़ लाख बताई जाती है। जबकि कर्मचारी संगठनों के हिसाब से संविदा व मानदेय कर्मचारियों की संख्या चार लाख से अधिक है। सरकारी महकमों में नियमित भर्ती नहीं होने की वजह से हर विभाग में संविदा कर्मचारियों की लंबी फौज जमा हो गई है। चपरासी से लेकर कप्यूटर ऑपरेटर, शिक्षक, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर सहित 40 से अधिक श्रेणी के पदों पर संविदा कर्मचारियों की ओर से मोर्चा संभाला हुआ है।

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हर विभाग की भर्ती में संविदा कर्मचारियों को बोनस के आधार पर प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान होना चाहिए। पिछली सरकार के समय बनी गाइडलाइन में यह सपना दिखाया गया था, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पा रहा है। वहीं संविदा कर्मचारियों के न्यूनतम अनुभव की सीमा को घटाकर तीन साल करना चाहिए।
–महेन्द्र बाजिया, भर्ती मामलों के विशेषज्ञ

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