Illegal madrasas sealed
उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ सरकारी कार्रवाई तेज़ होती जा रही है। मई 2025 तक राज्य में 170 से अधिक मदरसों को सील कर दिया गया है। इसी कड़ी में देहरादून स्थित दारुल उलूम मुहमदिया भी कार्रवाई की चपेट में आ गया, जहां 70 से 80 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
मदरसे के प्रबंधक मोहम्मद मोहतशिम का कहना है कि, हमारे पास शिक्षा और मदरसा बोर्ड दोनों की मान्यता है, जमीन के कागजात भी मौजूद हैं, फिर भी प्रशासन ने हमारी एक नहीं सुनी और मदरसा सील कर दिया गया।
प्रशासन का कहना है कि, जिन संस्थानों पर कार्रवाई हुई, उनके पास मदरसा बोर्ड से वैध मान्यता नहीं थी। वहीं, मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई सिर्फ़ ‘अवैध’ मदरसों तक सीमित नहीं, बल्कि एक समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश है।
सरकार की तरफ से क्या कहा गया?
दिसंबर 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी मदरसों के वेरिफिकेशन का आदेश दिया था। इसके तहत रजिस्ट्रेशन, फंडिंग स्रोत और छात्रों की संख्या के आधार पर जांच की गई। वेरिफिकेशन के बाद फरवरी 2025 में उत्तराखंड मदरसा बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें पुराने और नए रजिस्ट्रेशन की समीक्षा की गई। लेकिन अगले ही दिन कई मदरसों पर एक्शन शुरू कर दिया गया। सरकार और मदरसा बोर्ड का दावा है कि यह कार्रवाई सिर्फ़ गैर-पंजीकृत और अवैध मदरसों के खिलाफ है।
उत्तराखंड में मदरसों को लेकर उठाए जा रहे कदमों ने शिक्षा, प्रशासन और समुदाय के बीच एक नई बहस को जन्म दिया है। जहाँ एक ओर सरकार शिक्षा संस्थानों की पारदर्शिता और वैधता की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर समुदाय भेदभाव और अन्याय का आरोप लगा रहा है।