






RASHTRA DEEP।
हजार हवेलियों का शहर कहा जाने वाला बीकानेर अपना 536वां जन्मदिन मना रहा है। वैसे तो इस खास मौके पर सप्ताह भर से शहर में कार्यक्रमों का दौर चल रहा है, लेकिन मुख्य समारोह सोमवार को मनाया जा रहा है। स्थापना दिवस पर परंपरागत रूप से बाजरे व गेहूं का खीचड़ा व ठंडी इमलाणी बनती है। वहीं अक्षय द्वितीया पर लोग घरों में पूजा करके नई मटकी डालते हैं। यहीं नहीं स्थापना दिवस पर दिन भर पंतगबाजी का दौर भी चलता है। इसी अवसर पर बीकानेर से जुड़ी ऐसी ही कुछ खास बातें…
माँ करणी के आशीर्वाद से हुई थी बीकानेर की स्थापना,
राव बीकाजी ने इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना 1485 में की थी। विक्रत संवत 1545 के वैशाख मास की अक्षय द्वितीय के दिन राव बीका ने करणी माता के आशीर्वाद से बीकानेर नगर की स्थापना की थी। संस्कृति को संजोने का शौक अलमस्त लोगों के इस शहर में संस्कृति को संजोने और निभाने वालों की कमी नहीं है। यहां की पाटा संस्कृति और पुष्करणा समाज के सामूहिक वैवाहिक सावे ने देश के विभिन्न प्रांतों में बसे बीकानेर वासियों को आपस में एक किया है।

बीकानेर नाम केसे पड़ा,
राव बीका द्वारा 1485 में इस शहर की स्थापना की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति इस संपूर्ण जगह का मालिक था तथा उसने राव बीका को यह जगह इस शर्त पर दी की उसके नाम को नगर के नाम से जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीकानेर पड़ा।
कभी था, जांगल देश
बीकानेर राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक ‘जंगल धर बादशाह’ कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जंगल देश था।
स्वाद के दीवानों का शहर,
स्वाद के दीवानों का शहर बीकानेर शहर स्वाद के दीवानों का है। यही कारण है कि यहां बनने वाली खाने की चीजें दूसरों से अलग होती है।बीकानेरी भुजिया-पापड़ और रसगुल्लों एवं आदि स्वादिष्ट चीजे देश में ही नहीं विदेशों में भी एक खास पहचान है।
पूरे विश्व में हैं बीकानेर की विशिष्ट पहचान,
बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। महाराजा गंगासिंह ने नवीन बीकानेर रेल, नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं, यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के 5 द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। इनके नाम कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट हैं।
उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में मरुस्थल की गोद में बसा यह शहर आरम्भ से ही पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहां, लहराते रेत का समन्दर लोगों को आकृष्ट करता है। तो वहीं स्थापत्य कला से समृद्ध यहां की हवेलियां, ऐतिहासिक जूनागढ़ दुर्ग, भव्य मंदिर बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं।
करणी माता मंदिर की चर्चा पूरे विश्व में,
काबों (चूहों) वाली देवी के रूप में विश्वविख्यात करणी माता का देशनोक स्थित मन्दिर, महर्षि कपिल की तपोभूमि कोलायत आदि ऐसे स्थल हैं जो दूर देशों में भी बीकानेर को अपनी विशिष्ट पहचान देते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर सफेद चूहे खुले आम मंदिर परिसर में घूमते है। यहां भक्त इन चूहों से डरते नहीं प्यार करते हैं।
विश्व कुटुम्बकम का संदेश,
यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गजनेर पैलेस की झील, वहां के वन्यजीव अभ्यारण्य व अप्रवासी पक्षी, जिले की नोखा तहसील में स्थित गुरू जम्भेश्वर की तपोभूमि, भाण्डासर जैन मंदिर जिसका शिल्प सौन्दर्य देखते ही बनता है। राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ दूर देश तक फैली यहां की मिट्टी की खुशबू से जुड़े इटली के विद्वान टेस्सीटौरी की समाधि स्थल विश्व कुटुम्बकम का सन्देश देती है। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बना कतरियासर गांव पर्यटन की दृष्टि से अपने आप में नायाब है। रेत के विशाल धोरे, कतारबद्ध बने पारम्परिक झोपड़े बडे़ भू-भाग में फैला वन्यजीवन।
