RASHTRADEEP NEWS
कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी हार के लिए गुर्जरों की नाराजगी और भाजपा की ओर से वोटों के ध्रुवीकरण जैसे पांच कारण गिनाए हैं। कांग्रेस ने 69 सीटें जीतने को सम्मानजनक हार माना है। वहीं 20 सीटों पर 300 से 5000 वोटों के मार्जिन से हारी है।
कांग्रेस अब आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटेगी, लेकिन पहले नेता प्रतिपक्ष, उपनेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक (विपक्ष) जैसे पदों पर नियुक्तियां होंगी। इन नियुक्तियों में जाट-गुर्जर-ब्राह्मण त्रिकोण देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही प्रदेशाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी बदले जाने के संकेत भी मिले हैं।
1. गुर्जर समुदाय की नाराजगी: यह समुदाय राजस्थान में पांच सबसे बड़े मतदाता समूहों में से एक है, जिसकी करीब 70 सीटों पर बहुलता है। अजमेर, भरतपुर, दौसा, भीलवाड़ा, करौली, सवाईमाधोपुर, टोंक, जयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़ आदि जिलों में पार्टी करीब 70 प्रतिशत सीटें हार गईं।
2. भाजपा की ओर हिंदू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण: कांग्रेस ने अपनी हार के सबसे बड़े कारणों में से एक ये माना है कि भाजपा की ओर से चुनाव में हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया गया। संत समाज के लोगों को टिकट देकर धार्मिक भावनाएं बढ़ाई गईं, इससे कांग्रेस को नुकसान हुआ।
3. संगठन की कमजोरी: बहुत से जिलों में संगठन की कमजोरी भी सामने आई। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की ओर से पर्याप्त भाग-दौड़ नहीं की गई। अजमेर उत्तर-दक्षिण, मालवीय नगर, विद्याधर नगर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पुष्कर, मालपुरा जैसी सीटें कांग्रेस एक बार फिर नहीं जीत पाई, जबकि भाजपा कोटपूतली, सपोटरा, नवलगढ़ जैसी सीटें जीत गईं, जहां वो लगातार 3 बार से हार रही थी।
4. नेताओं का घमंड पूर्ण रवैया: नेताओं की ओर से अनावश्यक बयानबाजी और घमंडपूर्ण रवैया अपनाने से कई सीटों पर पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी। यही कारण है कि भाजपा के पहली बार चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के सामने कांग्रेस के सीनियर और दिग्गज नेता ढेर हो गए।
5. बागियों को समय पर नहीं मना पाना: कांग्रेस को करीब 25 सीटों पर बागियों के साथ भी लड़ना पड़ा। वोटों का बंटवारा हुआ और नुकसान उठाना पड़ा। समय रहते बागियों को मना नहीं पाई।