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आज राज्यसभा में सोमवार को दिल्ली सेवा बिल पारित हो गया। यह विधेयक लोकसभा में भी पारित हो चुका है। आज इस पर बहस के समय सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच कई बार गतिरोध हुआ।पर्ची के जरिए इस बिल पर वोटिंग हुई। बिल के पक्ष में 131 वोट जबकि इसके विरोध में 102 वोट पड़े।
इस बिल को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा है कि दिल्ली में सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए ये बिल लाया गया हैं। बिल का मकसद दिल्ली में भ्रष्टाचार को रोकना है।
गृह मंत्री शाह ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने भी दिल्ली को पूरा अधिकार नहीं दिया। हमें किसी राज्य के पावर को लेने की जरूरत नहीं है। वो केजरीवाल सरकार पूर्ण राज्य की पावर एन्जॉय करना चाहते हैं। दिल्ली के किसी भी सीएम के साथ ऐसे झगड़े नहीं हुए हैं। दिल्ली में अराजकता फैलाने का काम शुरू किया गया। केजरीवाल सरकार पावर का अतिक्रमण करती है।
आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्ढा बोले- नेहरूवादी नहीं, अटलवादी बनिए इससे पहले AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा, ये बिल एक राजनीतिक धोखा है। भाजपा ने 1989, 1999 और 2013 के लोकसभा चुनाव के घोषणा-पत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया था। आज भाजपा के पास मौका है, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दीजिए। चड्ढा बोले, गृहमंत्री अमित शाह कह रहे थे कि पंडित नेहरू दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के पक्ष में नहीं थे। मैं उन्हें बता दूं कि लालकृष्ण आडवाणी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए संसद में बिल लेकर आए थे।अटल जी, आडवाणी जी, सुषमा स्वराज और मदन लाल खुराना ने दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया था। आप ये बिल लाकर उनके संघर्ष का अपमान कर रहे हो। आपके पास मौका है- नेहरूवादी नहीं अटल-आडवाणीवादी बनिए।
भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी बोले- संसद को दिल्ली पर कानून बनाने का अधिकार है l। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संसद को दिल्ली पर कानून बनाने का अधिकार है। उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा आम आदमी पार्टी ने पंजाब और दिल्ली से कांग्रेस को साफ कर दिया, गुजरात में वोट हाफ कर दिया, फिर भी कांग्रेस ने इनको माफ कर दिया।
क्या है दिल्ली सेवा बिल?
इस विधेयक के ज़रिए मोदी सरकार उस अध्यादेश को क़ानून बनाना चाहती है, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल के पास दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग या ट्रांसफ़र का आख़िरी अधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए। पीठ ने कहा था कि दिल्ली में सभी प्रशासनिक मामलों में सुपरविज़न का अधिकार उपराज्यपाल के पास नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के हर अधिकार में उपराज्यपाल का दखल नहीं हो सकता।
पीठ ने कहा था, अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफ़र का अधिकार लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के पास होता है। भूमि, लोक व्यवस्था और पुलिस को छोड़ कर सर्विस से जुड़े सभी फैसले, आईएएस अधिकारियों की पोस्टिंग भले ही दिल्ली सरकार ने किया हो या नहीं उनके तबादले के अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही होंगे।