RASHTRADEEP NEWS – महाकुंभ में अखाड़े पहुंच चुके हैं। कल से महाकुंभ मेला शुरू हो जाएगा। 14 जनवरी को पहला शाही स्नान है। महाकुंभ में बने किसी भी अखाड़े के शिविर में कोतवाल होते हैं। ये अपने हाथ में चांदी की मुठिया लगी एक छड़ी रखते है। इस वजह से इन्हें छड़ीदार कहते हैं। शिविर की सुरक्षा के साथ अखाड़े में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है।
मिलती है गोलालाठी की सजा
अनुशासहीनता या अखाड़े के नियम तोड़ने के छोटे मामलों में इन्हें सजा देने का अधिकार मिलता है। इसी में से एक गोलालाठी की सजा है, जिसमें अनुशासनहीनता करने वाले अखाड़े के सदस्य का हाथ-पैर बांधकर पिटाई की जाती है। नियम तोड़न वालों को कोतवाल गंगा में 108 डुबकी लगाने के लिए बोलते हैं। कोतवाल गुरु कुटिया, रसोई की चाकरी, मुर्गा बनने और कपड़े उतरवाकर खुले आसमान के नीचे खड़ा रहने की भी सजा देते हैं।
अखाड़ों में दो से चार कोतवाल तैनात किए जाते हैं
हर अखाड़े में गुरु की कुटिया के पास कोतवाली स्थापित की जाती है। किसी अखाड़े में दो तो किसी में चार कोतवाल तैनात किए जाते हैं। इसी तरह कहीं हर सप्ताह होती है तो कहीं पूरे मेला अवधि के समय तैनात किया जाता है। किसी अखाड़े में इनकी तैनाती तीन साल के लिए भी की जाती है। महाकुंभ के दूसरे शाही स्नान के बाद कोतवाल चयनित किए जाते हैं। जिनका कार्यकाल अच्छा होता है, उन्हें सर्वसम्मति से थानापति या अखाड़े का महंत भी बनाया जाता है।
अखाड़े में जाजिम न्याय व्यवस्था लागू हो जाती है
महाकुम्भ क्षेत्र में जैसे ही अखाड़े की धर्म ध्वजा फहरती है, अखाड़े में जाजिम न्याय व्यवस्था लागू हो जाती है। अखाड़े की धर्म ध्वजा जिन चार तनियों पर टिकी होती है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मना जाता है। इन्हीं तनियों के नीचे जाजिम (दरी) बिछी होती है, इस पर बैठकर अखाड़े की न्याय व्यवस्था संचालित होती है इसलिए इसे जाजिम न्याय व्यवस्था कहते हैं।