Caste Census India
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। सरकार ने अब अगली जनगणना में जातिगत जनगणना (Caste Census) को भी शामिल करने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि यह कदम देश की सामाजिक-आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।
क्या है जातिगत जनगणना?
जातिगत जनगणना का मतलब है कि जब देश की जनसंख्या की गणना की जाती है, तो उसमें प्रत्येक व्यक्ति से उसकी जाति की जानकारी भी ली जाती है। यह प्रक्रिया यह जानने में मदद करती है कि समाज में किस जाति की कितनी आबादी है और वे किस सामाजिक-आर्थिक स्थिति में हैं।
जनगणना क्यों है जरूरी?
जनगणना न केवल जनसंख्या का आंकड़ा देती है, बल्कि देश के संसाधनों का समान वितरण, योजनाओं की प्रभावशीलता और वंचित वर्गों की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब जातिगत आंकड़े मिलने से सरकार ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य सामाजिक वर्गों के लिए अधिक सटीक और प्रभावी योजनाएं बना सकेगी।
विपक्ष पर हमला
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस और इंडी गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा कि विपक्ष ने जातिगत जनगणना को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जनगणना संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुच्छेद 246 के तहत केंद्र का विषय है।
बिहार बना उदाहरण
बता दें कि बिहार पहला राज्य है जहां हाल ही में जातिगत सर्वेक्षण कराया गया, जिससे राज्य सरकार को अपने योजनाओं में सटीक लक्ष्य निर्धारण करने में मदद मिली। अब केंद्र सरकार के इस फैसले से पूरे देश को एक समान मंच पर सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
2021 की जनगणना टली, 2026 में आंकड़े संभावित
कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना टाल दी गई थी। सूत्रों के मुताबिक, अब यह जनगणना 2025 में हो सकती है और इसके आंकड़े 2026 तक सार्वजनिक किए जाएंगे। इससे जनगणना का चक्र भी बदलेगा — जैसे 2025–2035 और 2035–2045।
निष्कर्ष
जातिगत जनगणना का यह ऐतिहासिक निर्णय सामाजिक न्याय, समानता और समावेशी विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। सरकार के अनुसार, पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ यह प्रक्रिया पूरी की जाएगी ताकि समाज में संतुलन और विकास दोनों सुनिश्चित हो सके।