।।श्रीहरि:।।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !!
‘योग’ वियोगसे होता है और ‘भोग’ संयोगसे होता है। -श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
दिनांक: 15.04.2024 वार : सोमवार सूर्योदय : प्रात: 06:12 बजेसूर्यास्त : सांय 07:00 बजे चन्द्रोदय : सांय 11:24 बजे हिन्दु मास : चैत्रपक्ष :- शुक्ला तिथि :- सप्तमी विक्रम सम्वत : 2081शक सम्वत :- 1946सम्वत नाम : पिंगल ऋतु :- बसंत- ग्रीष्म नक्षत्र – पुनर्वसु रात्रि।
सूर्य राशि – मेष, चंद्र राशि – मिथुन रात्रि 08:37 तक पश्चात कर्क दिशा शूल : पूर्व दिशा।
अभिजित मुहूर्त :- 12:11 – 13:03 शुभराहु काल :- सुबह 07:10 से सुबह 09:25 बजे तक।
चोघडिया दिन: अमृत 06:13 – 07:49 शुभकाल 07:49 – 09:25 अशुभशुभ 09:25 – 11:01 शुभरोग 11:01 – 12:37 अशुभउद्वेग 12:37 – 14:13 अशुभचर 14:13 – 15:49 शुभलाभ 15:49 – 17:25 शुभअमृत 17:25 – 19:01 शुभ।
चोघडिया रात: चर 19:01 – 20:25 शुभरोग 20:25 – 21:49 अशुभकाल 21:49 – 23:13 अशुभलाभ 23:13 – 24:36 शुभउद्वेग 24:36 – 26:00 अशुभशुभ 26:00 – 27:24 शुभअमृत 27:24 – 28:48 शुभचर 28:48 – 30:12।
शुभ नवरात्रि के सातवे दिन होंगी माँ कालरात्र की पूजा।
विशेष महत्व: मां के हाथों में खड्ग, लौह शस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा है। मां कालरात्रि की पूजा से क्या लाभ मिलता है: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की विधिवत पूजा करने से मां अति प्रसन्न होती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कालरात्रि भक्तों की काल से रक्षा करती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
लघु कथा: मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है। -पंडित ब्रज मोहन पुरोहित नृसिंह भैरव आश्रम देवीकुण्ड सागर, बीकानेर