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क्या गहलोत से नहीं हो पाई सुलह? पायलट ने फिर पर साधा निशाना…

RASHTRA DEEP NEWS BIKANER। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की रार खत्म हो गई है? इस वाक्य के खत्म होने पर प्रश्न चिह्न की जगह पूर्ण विराम भी लग सकता था, लेकिन हालात अभी ऐसे लग नहीं रहे हैं। बीते सोमवार को दोनों के बीच की रार खत्म होने के लिए दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के घर बैठक हुई थी। चार घंटे चले इस महामंथन के बाद केसी वेणुगोपाल दोनों को लेकर मीडिया के सामने आए थे और हाथ ऊंचे उठाकर ‘हम साथ-साथ हैं’ जैसी बात कही थी। उस दिन सुलह हो जाने वाली बात कही भी गई थी, लेकिन अब दो दिन बाद ही सचिन पायलट उस सुलह से खिसकते दिखाई दे रहे हैं।

उनके नए बयान ने कांग्रेस हाई कमान को फिर से टेंशन दे दी है। उन्होंने बुधवार को दो टूक कहा कि मैं तो युवाओं के मामले उठाता रहूंगा। उनका ऐसा कहना इस बात का संकेत दे रहा है कि राजस्थान कांग्रेस में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं है. खासकर गहलोत और पायलट में सुलह हो गई है, यह बात तो अभी सवालों के घेरे में ही है।

पायलट ने कहा- मैं तो बोलूंगा, बता दें कि राजस्थान के डिप्टी सीएम रह चुके सचिन पायलट ने बुधवार को एक बार फिर वही मुद्दे छेड़ दिए, जिन्हें लेकर उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और अशोक गहलोत सरकार को अल्टीमेटम भी दिया था. पायलट अभी टोंक से विधायक हैं और उन्होंने यहां कहा कि ‘नौजवानों के लिए मैंने हमेशा संघर्ष किया है। हमारे जैसे लोग अगर नौजवानों की बात नहीं रखेंगे तो उनकी उम्मीद खत्म हो जाएगी। पेपरलीक हो जाते हैं, परीक्षाएं रद्द हो जाती हैं। रोजगार और नौकरी की बात आती है तो वो हमारी प्राथमिकता नहीं होगी तो हमारी प्राथमिकता क्या होगी?
पायलट ने यह भी कहा कि, मैं अपने राजनीतिक जीवन में चाहे किसी पद पर हूं या न रहूं, मैंने प्रदेश के नौजवानों के लिए अपनी बात को रखने में कोई कमी नहीं रखी। यह किसी को नहीं समझना चाहिए कि हमने अपनी बात को रखना छोड़ दी है. हम अपनी बात पर बने रहेंगे। अपनी मांगों को पूरा करवाएंगे।

अब कांग्रेस के लिए क्या है मुश्किल? असल में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल इन दोनों नेताओं के बीच की रार है। वह गहलोत को छोड़ नहीं सकती है और सचिन पायलट को भी हाशिए पर नहीं रखा जा सकता है। उधर, राजस्थान चुनाव जीतने के बाद से ही पायलट की महात्वाकांक्षा रही है कि वह सीएम बनें। बल्कि वह और पहले ही सीएम बनना चाहते थे। इसके साथ ही पायलट गुट की मांग है कि चुनाव से पहले ही सीएम बदला जाए। इसके पीछे एक डर राजस्थान की सत्ता में चल रहा ट्रेंड भी है। बीते तीन दशकों से राजस्थान की जनता अल्टरनेट मोड पर सरकार चुन रही है। वह एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस को मौका देती है, ऐसे में पायलट यह बाजी हाथ से निकलने देना नहीं चाहते हैं।

उधर, कांग्रेस अशोक गहलोत को नजरअंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि पार्टी में उनकी वरिष्ठ स्थिति और वोट साधने की उनकी दांव पेच वाली सियासी ताकत को कांग्रेस नजरअंदाज नहीं कर सकती है। उधर, पायलट के सड़क पर उतरने को लेकर भी कई वरिष्ठों ने गलत माना है, ऐसे में गहलोत की अंदरूनी स्वीकार्यता और बढ़ी है। इसीलिए दोनों के बीच की रार को खत्म करने के लिए खड़गे आवास पर राहुल गांधी की मौजूदगी में बैठक हुई थी। जिसका नतीजा सुलह के तौर पर सामने आया था. लेकिन अब पायलट की बयानबाजी ने उस सुलह पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है।

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