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RASHTRA DEEP NEWS BIKANER। कांग्रेस हाईकमान के फार्मूले के तहत सचिन पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया जा सकता है। साथ ही पायलट के विधायकों को मंत्रिमंडल में पहले से ज्यादा संख्या में जगह दी जाएगी। इसके अलावा चुनाव बाद अगर कांग्रेस सरकार बनती है तो दो डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे।
राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सुलह का फार्मूला तैयार करने में कांग्रेस पार्टी जुटी है। इसमें सचिन पायलट को फिर से प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाने का ऑफर है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि पार्टी के इस ऑफर से सीएम गहलोत नाराज और चिंतित हैं। इसी कारण से दिल्ली में 26 मई को होने वाली बैठक टाल दी गई। हाईकमान गहलोत और पायलट दोनों को विश्वास में लेकर फिर से बैठक की नई तारीख तय करेगा। कांग्रेस हाईकमान के फार्मूले के तहत सचिन पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया जा सकता है। साथ ही पायलट के विधायकों को मंत्रिमंडल में पहले से ज्यादा संख्या में जगह दी जाएगी। इसके अलावा चुनाव बाद अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो दो डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे। जिनमें से एक पायलट और दूसरा गहलोत खेमे से होगा। इसी तरह दो कार्यकारी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने, जिनमें दोनों ग्रुप से एक-एक नेता को जगह देने और सचिन पायलट की तीन मांगों में से दो मांगें पूरी तरह मानने और तीसरी पर आंशिक सहमति फार्मूले के तहत बनती नजर आ रही है। इनमें पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाने, आरपीएससी की जगह नई संस्था के पुनर्गठन को लेकर प्रस्ताव तैयार करने, भर्ती परीक्षा पेपर लीक से प्रभावित अभ्यर्थियों को राहत देने की मांग शामिल है।
गहलोत फॉर्मूले से नाराज और चिंतित, पायलट को फिर से कर चुके टारगेट
कांग्रेस हाईकमान के इस फार्मूले से सीएम अशोक गहलोत बेहद नाराज और चिंतित हैं। गहलोत ने विपक्ष के बहाने सचिन पायलट के खिलाफ सार्वजनिक रूप से एक बयान देकर अपनी भावनाओं का इजहार भी कर दिया है। राजस्थान रोडवेज के जयपुर में सिंधी कैंप बस टर्मिनल लोकार्पण कार्यक्रम में गहलोत ने 25 मई को कहा था कि विपक्ष के लोग पेपर लीक से प्रभावित सभी अभ्यर्थियों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं। ऐसा दुनिया के इतिहास में कभी नहीं हुआ। गुजरात और यूपी में भी 15 से 22 परीक्षाओं के पेपर लीक हुए।
अभ्यर्थियों को मुआवजा देने की मांग करना बुद्धि का दिवालियापन नहीं तो और क्या है? यानी गहलोत का संकेत साफ है कि वह पायलट की मांगों को पूरी तरह गैर वाजिब मानते हैं। जो फार्मूला कांग्रेस हाईकमान दे रहा है वह सीएम अशोक गहलोत के गले नहीं उतर रहा है, क्योंकि गहलोत पायलट पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगा चुके हैं। राजस्थान की पब्लिक में यह नैरेटिव सीएम गहलोत सेट करने की कोशिश कर चुके हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सियासी संकट के दौरान सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायकों ने करोड़ों रुपया लिया है। गहलोत तो पायलट खेमे के विधायकों को वह पैसा लौट आने तक की बात सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और धर्मेंद्र प्रधान को भी गहलोत इस मामले में टारगेट कर चुके हैं। गहलोत खेमे के विधायक गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलने और संजीवनी घोटाले में गजेंद्र सिंह पर आरोप नहीं लगाने के सचिन पायलट के स्टैंड को भी टारगेट कर चुके हैं।
कांग्रेस हाईकमान को डर, कहीं फिर से इस्तीफे न हो जाएं? गहलोत-पायलट दोनों पार्टी की जरूरत कांग्रेस हाईकमान को चिंता यह है कि 25 सितंबर 2022 को जिस तरह से विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर एक अलग बैठक बुलाकर गहलोत खेमे के विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को दे दिए थे। अब पायलट को पीसीसी चीफ बनाया जाता है, तो विधानसभा चुनाव में टिकट बांटने के काफी अधिकार उनके पास आ जाएंगे। ऐसे में गहलोत खेमे के विधायकों के टिकट पायलट कटवा सकते हैं। इसलिए सीएम खेमे के विधायक कहीं फिर से अपने इस्तीफे ना दे दें। ऐसा हुआ तो सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर सकेगी और जल्द चुनाव की नौबत आ जाएगी। जो सरकार रिपीट करने का सपना कांग्रेस देख रही है वह भी धराशाई हो जाएगा। दूसरी ओर सचिन पायलट की मांग को दरकिनार कर दिया जाता है और अनुशासन की कार्रवाई उनके खिलाफ कर दी जाती है, या पायलट खुद कांग्रेस छोड़ देते हैं, तो सचिन पायलट के कांग्रेस पार्टी से बाहर होने पर चुनाव में बड़ा नुकसान हो सकता है। क्योंकि यूथ और गुर्जर समाज का बड़ा वोट बैंक पायलट के साथ है।
क्या है फार्मूला? सूत्रों के मुताबिक बैठक में सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाने का ऑफर किया जा सकता है। मौजूदा पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को फिर से मंत्री बनाने का ऑफर होगा, ताकि डोटासरा को हटाने पर जाट और किसान वोटर नाराज न हों। विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सीपी जोशी को उपमुख्यमंत्री पद ऑफर किया जा सकता है। चर्चा यह भी है कि दो उपमुख्यमंत्री और पीसीसी में दो कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं। जो अलग-अलग जातीय समीकरणों को चुनाव में साधेंगे। प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल किया जाएगा।
पायलट की तीन मांगों में से ज्यादातर पर कमेटी और प्रस्ताव बनाकर इतिश्री कर ली जाएगी। जो केवल दिखावे के लिए होगा, ताकि पायलट की बात रह जाए। असल लड़ाई पावर की है। ये कांग्रेस हाईकमान और सभी नेता भी अच्छे से समझते हैं। जो तीन मांगें की गई हैं, वो दबाव बनाने का बहाना हैं, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के इस फार्मूले पर पुष्टि नहीं हो सकी है। सूत्र बताते हैं सचिन पायलट के अल्टीमेटम में 31 मई तक का वक्त है। अगर कांग्रेस हाईकमान की अगली बैठक से पहले सचिन पायलट अपने राज्यव्यापी आंदोलन की घोषणा कर देते हैं, तो प्रदेश की राजनीति में उबाल आना तय है।
अब गहलोत और पायलट पर करेगा डिपेंड, उनका रुख क्या रहेगा? सीएम अशोक गहलोत नहीं चाहते हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी में रहें, क्योंकि पायलट का पार्टी में रहना उन्हें सीधे चुनौती और वर्चस्व की लड़ाई है। गहलोत के भविष्य में सीएम बनने में भी पायलट ही सबसे बड़ा रोड़ा नज़र आते हैं। गहलोत उन्हें नाकारा, निकम्मा, गद्दार, कोरोना और बहुत भला बुरा पहले ही कह चुके हैं। सरकार गिराने के षड्यंत्र में बीजेपी से मिलीभगत होने के भी आरोप लगा चुके हैं। सचिन पायलट के खिलाफ जो नेरेटिव गहलोत ने प्रदेश की जनता में सेट किया है, वह उससे वापस पीछे हटना नहीं चाहते। क्योंकि इससे जनता में बहुत जग हंसाई होगी। विपक्षी दल बीजेपी भी बहुत घेरेगा कि कुर्सी की लड़ाई में गहलोत सरकार ने पूरा कार्यकाल निकाल दिया। दूसरी ओर सूत्र बताते हैं पायलट को यह भी आश्वासन दिया जा रहा है कि यदि कांग्रेस सरकार रिपीट होती है, तो विधायकों के बहुमत के आधार पर भावी सीएम तय होगा। अब सचिन पायलट पर भी यह निर्भर करेगा कि क्या वो अपनी ज़िद्द पर अड़े रहेंगे या कांग्रेस पार्टी का सुलह का फार्मूला स्वीकार करेंगे। सचिन पायलट को यह अच्छे से मालूम है कि अशोक गहलोत सीएम पद की कुर्सी पर बरकरार रहेंगे, तो भावी सीएम का फेस भी गहलोत ही रहेंगे। पायलट की लड़ाई तो मुख्यमंत्री पद की कुर्सी है। क्या उसके बगैर सचिन पायलट फिर से आश्वासन के मायाजाल में आएंगे