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राजस्थान में आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल और चंद्रशेखर के गठबंधन से कांग्रेस और बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है। बेनीवाल के समर्थकों को दावा है कि गठबंधन से दलित वोट मिलेंगे। सियासी जानकारों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल जाट राजनीति को दलितों को समर्थन मिल सकता है। चुनाव से पहले किए गठबंधन का बेनीवाल को फायदा मिल सकता है। जानकारों का कहना है कि कभी कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहे जाट समुदाय का कोई बड़ा नेता नहीं है। प्रदेश की दो ध्रुवीय राजनीति में पीछे छूट गए है। ताकतवर कौम होने के बावजूद इस समुदाय को वो महत्व नहीं मिला। जिसकी उम्मीद वो लगाए बैठे है। कांग्रेस में नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा और शीशराम ओला जैसे दिग्गज जाट नेता हुए है। लेकिन हनुमान बेनीवाल के उदय के बाद जाट एक छाते तले एकत्रित हो रहे हैं। ऐसे बेनीवाल की पार्टी को चुनाव में फायदा मिल सकता है।
बेनीवाल का एक दर्जन जिलों में प्रभाव सियासी जानकारों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल का एक दर्जन जिलों में असर माना जाता है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन था। पार्टी के 3 विधायक चुनाव जीते थे। बेनीवाल खुद नागौर से सांसद है। राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बाहुल है। लेकिन सीकर, झुंझुनूं, नागौर के साथ जोधपुर क्षेत्र में जाट समाज का पॉलिटिक्स में बड़ा दखल रहा है। कई सीटों पर बेनीवाल खेल बिगाड़ सकते हैं। बता दें राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 142 सीट सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। लेकिन दलगत टिकट बंटवारें में सामान्य वर्ग में जहां राजपूत कैंडिडेट्स को सर्वाधिक टिकट मिलते हैं। वहीं ओबीसी में सबसे ज्यादा टिकट जाटों को बांटे जाते हैं।