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पूर्व सीएम अशोक गहलोत 19,201 वोट जीत का अंतर घटा। उन्हे मारवाड़ का गांधी और राजनीति का जादूगर कहा जाता है। लेकिन मारवाड़ में ही गहलोत का जादू नहीं चला। अपनी खुद की सीट सरदारपुरा पर ही वो अपना प्रदर्शन नहीं दोहरा पाए, जबकि वो कांग्रेस के सीएम पद का चेहरा थे। 2018 में वे सरदारपुरा सीट से 45 हजार 597 वोटों से जीते। 2023 me उन्हें 26 हजार 396 वोट ही मिले।
पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का जीत का अंतर लगभग आधा हो गया। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे सचिन पायलट ने टोंक विधानसभा सीट से भले ही अपना किला बचा लिया हो लेकिन उनकी जीत का अंतर कम हो गया। सचिन पायलट 2018 में टोंक से पहली बार विधायक बने। सचिन को कांग्रेस पार्टी में बड़ा गुर्जर नेता माना जाता है। 2018 में उन्होंने बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे यूनुस खान को 54,179 के बड़े अंतर से हराया था। इस बार 2023 में उनकी जीत का मार्जिन घटकर 29,475 पर रह गया।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से कुल 1,13,304 वोट मिले। उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुभाष महरिया को 18,970 वोटों से हराया। मोदी मैजिक के बावजूद डोटासरा अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में उनकी जीत का मार्जिन कम हुआ। डोटासरा 2008 में 34 वोट से लक्ष्मणगढ़ सीट से जीत थे। 2013 में 10723 वोट से जीते, 2018 में 22052 वोट से जीते थे। चार चुनाव में पहली बार उनके जीत के अंतर में कमी आई है।
पूर्व मंत्री शांति धारीवाल 9 गुना घटा जीत का अंतर। कोटा इस बार भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। उन्होंने बीजेपी के प्रहलाद गुंजल को कड़े मुकाबले में महज दो हजार 486 वोटों से हराया। पिछला चुनाव उन्होंने करीब 18 हजार वोटों से जीता था। उन्हें 2018 और 2023 में लगभग बराबर वोट मिले। लेकिन जीत का अंतर घट गया।
यह नही दिग्गज नहीं बचा पाए अपनी सीट
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी दोहरा नहीं पाए जीत। कांग्रेस के वरिष्ठ और अनुभवी नेता डॉ. सीपी जोशी अपना किला नहीं बचा सके। पिछले चुनाव में वे 16 हजार 940 वोटों से जीते, लेकिन इस बार हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के विश्वराज सिंह मेवाड़ ने उन्हें 7504 वोटों से हराया। इस सीट पर कांटे की टक्कर थी। मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह को 94,950 वोट मिले। करीब 30 साल बाद महाराणा प्रताप का कोई वंशज राजनीति में वापस आया। इनके जरिए बीजेपी ने राजपूतों को भी साधने की कोशिश की।
पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ बीडी कल्ला जितने वोटों से जीते, उससे तीन गुना से हारे। बीकानेर पश्चिम सीट से 20,194 वोटों से हार गए। उन्हें बीजेपी के जेठानंद व्यास ने हराया। हिंदूवादी नेता जेठानंद व्यास ने करीब दो महीने पहले ही बीजेपी ज्वॉइन की थी। यहां पीएम मोदी के रोड शो से बीजेपी के पक्ष में माहौल बना। पिछले चुनाव में बीडी कल्ला ने 6 हजार से अधिक वोटों से बीजेपी के गोपाल कृष्ण को हराया था। बीजेपी ने इस बार नए चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा। बीडी कल्ला 1980 में पहली बार बीकानेर पश्चिम सीट से जीते, इसके बाद 1985, 1990, 1998 और 2003 में यहां से लगातार जीत हासिल की। इसके बाद 2018 में जीतकर गहलोत सरकार में शिक्षा मंत्री बने। वे विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।