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राजस्थान के इन दिग्गजों पर मंडरा रहा है संकट…

RASHTRADEEP NEWS

राजस्थान में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों का प्रचार चरम पर है। इस बार बीजेपी और कांग्रेस के आधा दर्जन दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यहीं नहीं यदि इस बार लोकसभा चुनाव हार जाते हैं तो उनके राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लग सकता है।

कांग्रेस के जयपुर से प्रत्याशी प्रताप सिंह खाचरियास कह चुके हैं कि हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा। खाचरियावास के मुताबिक वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन विधानसभा का चुनाव हारने के बाद पार्टी ने टिकट दे दिया। इस बार यह चुनाव हार गया तो कहीं के नहीं रहेंगे। बता दें प्रताप सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता है। जयपुर की सिविल लाइंस से विधानसभा का चुनाव हार गए। इसके बाद भी पार्टी ने उन पर विश्वास जताया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अकेले खाचरियवास ही ऐसे नेता नहीं है, जो चुनाव नहीं लड़ना चाहते है। कांग्रेस के कई प्रत्याशी खुलकर कर स्वीकार कर चुके है कि वह चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। राजसंमद प्रत्याशी सुदर्शन रावत ने अपना टिकट वापस लौटा दिया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नागौर सीट से बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के लिए यह चुनाव काफी मायने रखता है। ज्योति मिर्धा के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पार्टी ने लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है। इस बार चुनाव नहीं जीत पाती है राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लग सकता है। क्योंकि पहले भी दो लोकसभा का चुनाव हार चुकी है। इस बार ज्योति मिर्धा के सामने एक बार फिर से हनुमान बेनीवाल है। बेनीवाल इस बार इंडिया महागठबंधन के प्रत्याशी है।

दूसरी मोदी सरकार के मंत्री कैलाश चौधरी को इस बार बाड़मेर-जैसलमेर से कड़ी चुनौती मिल रही है। यदि कैलाश चौधरी चुनाव हार जाते हैं तो राजनीति खत्म हो सकती है। क्योंकि कैलाश चौधरी को विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव का टिकट दिया था। हालांकि, वह चुनाव जीत गए थे। लेकिन इस बार कांटे का मुकाबला है।

सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता उदयलाल आंजना को विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने चित्तौड़गढ़ से टिकट दिया है। उनका मुकाबला बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से है। आंजना के लिए चुनाव काफी मायने रखता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आंजना के लिए यह चुनाव काफी मायने रखता है। आंजना जीत जाते है तो उनका राजनीतिक कैरियर आगे बढ़ सकता है। लेकिन लगातार हार के बाद संकट में पड़ सकते है।

सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार मुकाबला कांटे का है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी फाइट है। हालांकि, इस बार कांग्रेस ने गठबंधन के लिए 2 सीटें छोड़ी है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा पर संशय बना हुआ है।

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