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जैसे ही झालरापाटन से वसुंधरा राजे के टिकट का ऐलान हुआ, उन्हें बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के तौर पर गिना जाने लगा। राजस्थान की सियासत में वसुंधरा का कद ही ऐसा है। वह दो बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। काफी समय से उन्हें साइडलाइन माना जा रहा था लेकिन बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसकी बड़ी वजह यह है कि पार्टी को उनका वोटर कनेक्ट चाहिए था। यह उनका मतदाताओं से घनिष्ठ नाता है। वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में वसुंधरा राजे पर एक लेख लिखा है। वह कहती हैं कि ‘पुरुष-प्रधान’ राजस्थान की राजनीति में राजे दुर्लभ महिला नेता हैं। सागरिका ने 2003 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में उनका चुनाव प्रचार कवर किया था।
उस चुनाव में भाजपा ने 120 सीटें जीती थीं और वसुंधरा पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। कैंपेन के दौरान उन्होंने भीड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा था, ‘मेरे आलोचकों को देखना चाहिए कि लोग मुझे कितने प्यार से स्वीकार करते हैं। वे शिफॉन पहने, पोलो खेलने वाली महिला को चुनते हैं।’
वरिष्ठ स्तंभकार लिखती हैं कि भाजपा नेताओं में वसुंधरा की छवि एक असाधारण नेता की है। वह अलग राय रखने में नहीं हिचकती हैं। हमेशा अच्छे से ड्रेस्ड दिखने वालीं वसुंधरा धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलती हैं। राजस्थान के समाज में पुरुष हावी हैं, ऐसे में उन्हें कई बार बीजेपी के पुराने दिग्गज पुरुष नेताओं और राजस्थान में संघ परिवार के लोगों से मोर्चा लेना पड़ा है। उन पर अपने ‘शाही’ वंश के कारण अहंकारी होने और सामंती होने के आरोप लगते रहे हैं।
फिर भी वसुंधरा दो बार मुख्यमंत्री बनीं और कार्यकाल पूरे किए। उनकी अपनी पार्टी के कुछ लोग इस बात से असहज हो सकते हैं कि वह एक स्वतंत्र विचार वाली महिला नेता हैं जिनका क्षेत्रीय आधार है। वसुंधरा ने अपनी राजनीतिक पहचान और जनाधार खुद तैयार किया है। उन्होंने पार्टी में वफादारों का अपना समूह बनाया। राजस्थान के वोटरों के साथ उनका विशेष कनेक्शन है, जिनमें से कई उन्हें ‘जाट बहू’ के रूप में देखते हैं। जनसंघ की सदस्य रहीं विजयाराजे सिंधिया की बेटी होने के नाते, उनका भाजपा आलाकमान से रिश्ता अलग रहता है। वह अपनी पार्टी में यूनिक हैं। हिंदी पट्टी की वह एक महिला क्षेत्रीय क्षत्रप हैं।
25 नवंबर को होने वाले चुनाव के लिए घोषित उम्मीदवारों की पहली सूची में वसुंधरा के कई करीबियों को टिकट नहीं मिला। राजस्थान राज्य इकाई में अभूतपूर्व बगावत की आशंका पैदा हो गई। ऐसे में यह आश्चर्य की बात नहीं कि इसे टालने के लिए भाजपा ने तेजी से कदम बढ़ाया। उनके वफादारों में से एक नरपत सिंह राजवी 2008 से लगातार विद्याधर नगर सीट से जीतते आ रहे थे, इस बार उनकी सीट से भाजपा ने राजसमंद की सांसद दीया कुमारी को मैदान में उतारा है। बाद में आई दूसरी सूची में न केवल राजवी का नाम शामिल था बल्कि वसुंधरा कैंप के ज्यादातर नेताओं को टिकट मिल गया।