RASHTRADEEP NEWS
राजस्थान में एक सीट पर राज्यसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। यह सीट कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल के लोकसभा सीट जीतने के बाद खाली हुई थी। सूत्रों की मानें तो राज्यसभा उपचुनाव में कांग्रेस की तरफ से दावेदार खड़ा करने की संभावनाएं कम ही हैं।विधायकों के संख्या बल बीजेपी के पक्ष में दिखाई देता है। यदि कोई बहुत बड़ा उलटफेर नहीं हुआ, तो बीजेपी अपने दावेदार को आसानी से जिता ले जाएगी। सवाल अब यह है कि बीजेपी से कौन सबसे मजबूत दावेदार होगा?
सबसे मजबूत दावेदार सतीश पूनिया
राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक 8 महीने पहले आलाकमान ने सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था। हालांकि उनका कार्यकाल पूरा हो गया था, लेकिन आलाकमान के इस निर्णय से पूनिया आहत हो गए थे। पूनिया चाहते थे कि विधानसभा चुनाव तक आलाकमान उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बने रहने का मौका देता। उस दौरान पार्टी में चर्चा थी कि जातीय समीकरण साधने के लिए ब्राह्मण चेहरे सीपी जोशी को इस पद पर बैठाया गया था।
- सूत्रों के अनुसार, पूनिया को आलाकमान राष्ट्रीय राजनीति में लाना चाह रहा है। हरियाणा प्रभारी बनाने से पहले उनसे आलाकमान ने संगठन में राष्ट्रीय महासचिव पद को लेकर चर्चा भी की थी। लेकिन कुछ कारणों से बात नहीं बनी। अब आलाकमान उन्हें राज्यसभा का टिकट देकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इसके बाद संभावना है कि उन्हें संगठन में भी पद दे दिया जाए। राज्यसभा सांसद बनते हैं, तो उनके दिल्ली में रहने के लिए आवास भी आवंटित हो जाएगा।
दूसरे बड़े दावेदार राजेंद्र राठौड़
लम्बा राजनीतिक अनुभव और संसदीय समझ राजेंद्र राठौड़ को अन्य नेताओं से आगे रखती है। सूत्रों के अनुसार भाजपा आलाकमान राठौड़ की भूमिका को तय करने के लिए जुटी हुई है। इस कारण पार्टी राज्यसभा चुनाव को लेकर भी राठौड़ के नाम पर विचार कर रही है। राठौड़ बड़े नेता होने के साथ-साथ प्रदेश में बीजेपी का राजपूत चेहरे के रूप में देखे जाते हैं। ऐसे में वे राज्यसभा चुनाव में दावेदारों की दौड़ में शामिल हैं।
- राजेंद्र राठौड़ लगातार 7 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद 8वां विधानसभा चुनाव हार गए। पिछले विधानसभा चुनाव में राठौड़ को चूरू जिले की तारानगर सीट से टिकट दिया गया था। राठौड़ पर आरोप है कि इस चुनाव प्रचार के दौरान उनके बयानों से जाट समाज नाराज हो गया। इस चुनाव की हार के बाद राठौड़ का नाम इसी साल हुए लोकसभा चुनाव की टिकट वितरण के दौरान भी छाया रहा था। माना जा रहा है कि जाट समाज की नाराजगी के चलते उन्हें टिकट नहीं मिली।
- बीजेपी आलाकमान ने चूरू लोकसभा सीट पर नए चेहरे देवेंद्र झाझड़िया को मौका दिया था। जाट समाज यहां एक बड़ा वोट बैंक होने के नाते बीजेपी को उनकी जीत की उम्मीद थी। चूरू से होने के कारण राठौड़ ने झाझड़िया को जिताने के लिए बहुत मेहनत की। लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। इससे भी उनकी छवि को थोड़ी चोट पहुंची। राजनीतिक हलको में चर्चा रहती है कि शेखावाटी में भाजपा के कमजोर प्रदर्शन का ठीकरा राजेंद्र राठौड़ के खाते में चला गया।